Vishnu Chalisa Lyrics: विष्णु चालीसा का पाठ करने के कई लाभ हैं। यह शास्त्र भगवान विष्णु की 40 छंदों में स्तुति करता है, जो भक्तों को मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है। नियमित पाठ से जीवन में सुख-समृद्धि, दैवीय आशीर्वाद और संकटों से मुक्ति मिलती है। विष्णु चालीसा के पाठ से समृद्धि, दीर्घकालिक स्वास्थ्य, और परिवारिक सौहार्द बढ़ता है। यह ध्यान और साधना की क्षमता को भी सुधारता है, जिससे मन को स्थिरता और सकारात्मकता मिलती है। इसके अलावा, यह भक्तों को आत्मविश्वास और मानसिक शक्ति में वृद्धि करता है। विष्णु चालीसा का नियमित पाठ व्यक्ति के जीवन को सकारात्मक दिशा में मार्गदर्शित करता है और आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।
॥ दोहा ॥
विष्णु सुनिए विनय,सेवक की चितलाय। कीरत कुछ वर्णन करूँ,दीजै ज्ञान बताय॥
॥ चौपाई ॥
नमो विष्णु भगवान खरारी।कष्ट नशावन अखिल बिहारी॥ प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी।त्रिभुवन फैल रही उजियारी॥
सुन्दर रूप मनोहर सूरत।सरल स्वभाव मोहनी मूरत॥ तन पर पीताम्बर अति सोहत।बैजन्ती माला मन मोहत॥
शंख चक्र कर गदा बिराजे।देखत दैत्य असुर दल भाजे॥ सत्य धर्म मद लोभ न गाजे।काम क्रोध मद लोभ न छाजे॥
सन्तभक्त सज्जन मनरंजन।दनुज असुर दुष्टन दल गंजन॥ सुख उपजाय कष्ट सब भंजन।दोष मिटाय करत जन सज्जन॥
पाप काट भव सिन्धु उतारण।कष्ट नाशकर भक्त उबारण॥ करत अनेक रूप प्रभु धारण।केवल आप भक्ति के कारण॥
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा।तब तुम रूप राम का धारा॥ भार उतार असुर दल मारा।रावण आदिक को संहारा॥
आप वाराह रूप बनाया।हिरण्याक्ष को मार गिराया॥ धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया।चौदह रतनन को निकलाया॥
अमिलख असुरन द्वन्द मचाया।रूप मोहनी आप दिखाया॥ देवन को अमृत पान कराया।असुरन को छबि से बहलाया॥
कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया।मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया॥ शंकर का तुम फन्द छुड़ाया।भस्मासुर को रूप दिखाया॥
वेदन को जब असुर डुबाया।कर प्रबन्ध उन्हें ढुँढवाया॥ मोहित बनकर खलहि नचाया।उसही कर से भस्म कराया॥
असुर जलंधर अति बलदाई।शंकर से उन कीन्ह लड़ाई॥ हार पार शिव सकल बनाई।कीन सती से छल खल जाई॥
सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी।बतलाई सब विपत कहानी॥ तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी।वृन्दा की सब सुरति भुलानी॥
देखत तीन दनुज शैतानी।वृन्दा आय तुम्हें लपटानी॥ हो स्पर्श धर्म क्षति मानी।हना असुर उर शिव शैतानी॥
तुमने धुरू प्रहलाद उबारे।हिरणाकुश आदिक खल मारे॥ गणिका और अजामिल तारे।बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे॥
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